समष्टि की
परिवर्तन की आंधी की कामना
कठिन है अभीष्ट की
कुंठित है तीर
हमें जिन पर विश्वास है
कथा और विफलता
अविश्वास से निराश है
मूल भाव मन से
कुछ ऐसे विलीन हुए
भाव ही दिखते हैं
हम स्वयं ब्रह्मलीन हुए
रोती बिलखती इंसानियत को
कौन पूछता है किसको समय है
जीवन के यथार्थ में
आज यही आय व्यय है
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प्रताप नारायण पांडेय
ग़ज़िआबाद
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प्रताप नारायण पांडेय
ग़ज़िआबाद